कब से अँधेरे में घूम रही हूँ मैं ,
कोई रौशनी तो दिखा।
रोज नई नई मुश्किलों से जूझ रही हु मैं ,
कोई सहारा तो दिखा।
लोग कहते हैं के मिलवाता है तू सबको उनकी मंजिल से,
मैं तो ना जाने कब से भवर में फसी हूँ,
मंजिल न सही मंजिल का रास्ता तो दिखा।
कोई रौशनी तो दिखा।
रोज नई नई मुश्किलों से जूझ रही हु मैं ,
कोई सहारा तो दिखा।
लोग कहते हैं के मिलवाता है तू सबको उनकी मंजिल से,
मैं तो ना जाने कब से भवर में फसी हूँ,
मंजिल न सही मंजिल का रास्ता तो दिखा।
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तू उदास है तो लगता है जैसे रूठ गई मेरी ज़िन्दगी मुझसे ,
तू खफा है तो लगता है जैसे खफा हो गई मेरी ज़िन्दगी मुझसे।
तेरी मुस्कराहट में ज़िन्दगी मेरी ,
जो तू रूठा है तो लगता है जैसे रूठ गई मेरी ज़िन्दगी मुझसे।
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